आसमाँ से धुंध के
पट खोलकर फिर
लौट आए दिन बसंती
ख्वाब वाले
कन्दरा से कोकिला
का
मौन बोला
कर बढ़ा अमराइयों ने
द्वार खोला
आम्र-बौरों ने धरा
के
चरण चूमें
गा उठी ऋतु, पीतवर्णी
ओढ़ चोला
क्रूर मौसम के किले
को तोड़कर फिर
मुस्कुराए दिन
सुनहरी
आब वाले
बाग की तनहाइयाँ
फिर
गुनगुनाईं
भँवरों ने कलिकाओं
से
आँखें लड़ाईं
रस भरे ऋतुराज की
खातिर
गुलों ने
अल्पनाएँ, रंग-खुशबू
से सजाईं
भूल बीता काल
हिम्मत जोड़कर फिर
जगमगाए दिन दिलों
की
ताब वाले
--कल्पना रामानी
1 comment:
बहुत सुन्दर बासंती गीत
आया वसंत झूम के ..
Post a Comment