रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Thursday 24 July 2014

मन जोगी मत बन


कर्म बोध से नज़र चुराकर। 
मन जोगी मत बन।
 
जिस अनंत से हुआ आगमन।
पुनः वहीं जाना।
जो कुछ लिया, चुकाना भी है
तभी मोक्ष पाना।
 
रहना है इस मर्त्य-लोक में
जब तक है जीवन।
 
अगर पंक है, कमल खिला दे
काँटों में कलियाँ।  
सार ढूँढ निस्सार जगत से
ज्ञान असीम यहाँ
 
धूप-छाँव के अटल सत्य से
क्यों इतनी उलझन।
 
स्वर्ग असीम, मनोरम रे मन!
बिछा हुआ भू पर।
नाताके साथ जोड़ ले
सब कुछ अपनाकर।
 
भोग वरण कर बाँट विश्व में
सुरभित भाव-सुमन।

-कल्पना रामानी

1 comment:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

वाह .... सुन्दर सार्थक, प्रेरणादायी भाव हैं

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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