कर्म बोध से नज़र चुराकर।
मन जोगी मत बन।
जिस अनंत से हुआ आगमन।
पुनः वहीं जाना।
जो कुछ लिया, चुकाना भी है
तभी मोक्ष पाना।
रहना है इस मर्त्य-लोक में
जब तक है जीवन।
अगर पंक है, कमल खिला दे
काँटों में कलियाँ।
सार ढूँढ निस्सार जगत से
ज्ञान असीम यहाँ।
धूप-छाँव के अटल सत्य से
क्यों इतनी उलझन।
स्वर्ग असीम, मनोरम रे मन!
बिछा हुआ भू पर।
नाता इसके साथ जोड़ ले
सब कुछ अपनाकर।
भोग वरण कर बाँट विश्व में
सुरभित भाव-सुमन।
-कल्पना रामानी
1 comment:
वाह .... सुन्दर सार्थक, प्रेरणादायी भाव हैं
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