पत्र पत्रिका हुए पुराने
विश्वजाल पर छाना है।
नई सोच के नए नज़ारे
आया नया ज़माना है।
सीढ़ी सरक गई साइड में
लिफ्ट लपक ली खड़े खड़े।
चले सैर को संग पालतू
रिश्ते नाते हुए परे।
गाँव दौड़कर शहर आ गए
शहर चाँद पर जाना है।
जीन्स पहनकर चले अकड़ से
धूल धरा, धोती कुर्ता।
पिज्जा, बर्गर अहा स्वाद क्या!
दूर हुआ बैंगन भुरता।
चौपाटी बन गई फेसबुक
चाट चैट की खाना है।
ट्राफिक जाम न होंगे होगा
यातायात हवाओं में।
नवग्रह होंगे नए ठिकाने
उत्सव नई फिज़ाओं में।
बातें औ दीदार, जाल पर
उलझा ताना बाना है।
-कल्पना रामानी
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