मन मेरा करता है पापा
काव्य ग्रंथ रच डालूँ।
माँ पर बहुत लिखा बहुतों ने
मैं तुमको लिख डालूँ।
माँ महान है माना मैंने
तुम महानतम पापा।
सबसे सुंदर माँ है जग में
तुम सुंदरतम पापा।
गृहस्थी के इस फूलदान में
प्यारे पुष्प सजा लूँ।
अपने हाथों सींचूँ बगिया
स्वर्ग समान बना लूँ।
छिपने को है माँ का आँचल
वरना बचपन फीका
गर्व से तनकर कदम बढ़ाना
पापा तुमसे सीखा।
साथ बढ़ूँ मैं सदा तुम्हारे
अपनी मंज़िल पा लूँ।
पूरे करूँ तुम्हारे सपने
जीवन सफल बना लूँ।
माँ से ममता पाई लेकिन
ज्ञान तुम्हीं से पापा।
माँ ने सींचा बड़ा किया पर
नाम तुम्हीं से पापा
अब मैं अपना नाम तुम्हारे
नाम संग लिखवा लूँ।
सखी सहेली माँ है पापा
तुमको मित्र बना लूँ।
माँ ने पाई है कुदरत से
कोमल, कंचन, काया
कवच कठोर कदाचित तुमने
इसीलिए है पाया।
मन में कोमल भाव भरे हैं
जग को यह दिखला दूँ
मैने तुम्हें पढ़ा है पापा
आज तुम्हें लिख डालूँ।
-कल्पना रामानी
1 comment:
गज़ब इस से बेहतर और क्या एहसास होगा।
सादर नमन
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