रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Friday, 9 January 2015

तुम्हें हम क्या दें गंगा माँ!














 

हमें दिये वरदान,तुम्हें हम,
क्या दें गंगा माँ!
 
देवलोक से चली उतरकर।
शिव ने तुम्हें  सँभाला सिर पर।
हिमखंडों से निकल वेग सी,
हमें तारने आई भू पर।
वैतरणी,जग ताप हारणी,
लाई स्वर्ग यहाँ!
 
सकल विश्व के दोष खंडिता।
मोक्षदायिनी,वरद वंदिता।
वेद मंत्र की पावन सलिला,
सदियों से तुम सदा पूजिता।
धाम अनगिने  हुए विश्व में,
पाया मोक्ष यहाँ!
 
पाप हुए इस जल में  तर्पण।
जन्म अनेक तुम्हीं को  अर्पण।
ऋणी रहेगा सदा तुम्हारा,
माटी के इस तन का  कण-कण।
हमें शाप मत दो माँ गंगा,
हम निकृष्ट नादाँ!
 
ऐसा कुछ सदज्ञान  हमें दो।
संस्कृति का फिर से प्रवेश  हो।
दूर विकृतियाँ करें तुम्हारी,
तमस हृदय में अब अशेष हो।
पीड़ा हरणी तुम भगीरथी,
हम पीड़ित इनसाँ!
"हौसलों के पंख से" 
------कल्पना रामानी

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--कल्पना रामानी

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