बढ़े धूप के तेवर रूठी
आँगन की तुलसी।
सींच न पाई गृहिणी उसको
जल का था टोटा।
कोने में चुपचाप पड़ा था
मैला सा लोटा।
ऊपर से गर्मी का भारी
आन पड़ा सोटा।
मुरझाई बिन पानी प्यासी
पावन सी तुलसी।
छाया वाले छप्पर में भी
छिद्रों का था जाल।
सूरज तपकर पहुँचा सिर पर
बना काल तत्काल।
लड़े अंत तक कोमल पत्ते
सूख हुए कंकाल।
दम टूटा पतझड़ में बदली
सावन सी तुलसी।
सूखी तुलसी लेकिन उसके
बीज सदैव हरे।
फिर से नव अंकुर फूटेंगे
जब जल बूँद गिरे।
गृहिणी के भी दिन बदलेंगे
जैसे समय फिरे।
लहराएगी फिर ममता के
दामन सी तुलसी।
-कल्पना रामानी
3 comments:
तुलसी के माध्यम से गर्मी के मौसम की सफल अभिव्यक्ति। सुन्दर रचना। -जगदीश पंकज
वाह, बहुत सुन्दर और सार्थक।
अति सुन्दर
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