रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Friday, 9 August 2013

बोल उठी अनजन्मी बेटी


बोल उठी अन जन्मी बेटी
तुमसे मेरा नाता न्यारा।  
माँ मेरी, मैं अंश तुम्हारा
मुझे बचा लो, वंश तुम्हारा।
 
कुदरत से मैंने हक पाए
मेरा दम क्यों घोंटा जाए?
तुम जननी हो जीवन दाई
जग बैरी चाहे बन जाए।
 
दे दो अपना सदय सहारा
माँ मेरी, मैं अंश तुम्हारा।  
 
माँ, तुम गाओ सुमधुर लोरी
स्वर्ण हिंडोला, रेशम डोरी।
निष्ठुर जग का करो सामना
कहीं साधना रहे न कोरी।
 
थमे न मेरा पलना प्यारा
माँ मेरी, मैं अंश तुम्हारा।
 
माँ, मुझको सपने गढ़ने दो
अपनी प्रेम-लता बढ़ने दो।
अमृत पय से सहज सींचकर
हर ऊँचाई पर चढ़ने दो।
 
दे दो मुझे सुबह का तारा
माँ मेरी मैं अंश तुम्हारा।
 
माँ यदि किया विसर्जन मेरा
नहीं दिखाया मुझे सवेरा।
मनुष-वंश क्या लुप्त न होगा?
तोड़ा अगर सृष्टि का घेरा!
 
मत रोको बहती जल धारा
माँ मेरी, मैं अंश तुम्हारा।

-कल्पना रामानी

1 comment:

nayee dunia said...

bahut marmik rachna , kahan suni jati hai pukar

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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