कुदरत के कायदों को
पल में भुला दियाविष बीज बोके मानव!
सावन सुखा दिया।
क्या कुछ नहीं मिला था,
पुरखों से आपको,
अमृत कलश से सींचा,
अपने विनाश को।
जन्नत सी मेदिनी को,
दोजख बना दिया।
बूँदें बचा न पाये,
बादल भी क्या करे?
कब, क्यों, कहाँ वो बरसे,
क्यों फिक्र वो करे?
बल खाते निर्झरों को,
निर्जल बना दिया।
जग बन गया मशीनी
मौसम धुआँ धुआँ,
दम घोंटती हवाएँ,
विष युक्त आसमाँ।
खोकर बहार अपनी,
पतझड़ बसा लिया।
नई पौध के लिए जल,
रह जाएगा कथा।
बोतल में बंद पानी।
कह देगा सब व्यथा।
दोहन किया हमेशा,
रक्षण न गर किया।
-कल्पना रामानी
No comments:
Post a Comment