रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Sunday, 4 August 2013

उत्तर यहीं अड़ा है















पावस का इस बार देश पर,
प्यार बहुत उमड़ा है।
लेकिन क्या सुख संचय होगा?
संशय नाग
खड़ा है।
 
मक्कारी, गद्दारी, लालच
शासन के कलपुर्ज़े। 
बूँद-बूँद को चट कर देंगे
घन बरसे या गरजे।
 
भरे सकल जल-स्रोत लबालब
सागर ज्वार चढ़ा है।  
मगर उसे नल नहलाएगा?
चिंतित मलिन
घड़ा है।
 
बन मशीन मानव ने भू के
रोम-रोम को वेधा।
क्यों कुदरत फिर क्षुब्ध न होगी
रुष्ट न होंगे मेघा!
 
अमृत वर्षा से खेतों का
कण-कण जाग पड़ा है।
पर किसान का उत्सव होगा?
उत्तर यहीं
अड़ा है।

 -कल्पना रामानी  

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--कल्पना रामानी

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