Thursday, 4 April 2013
गर्म धूप में ढूँढ रहे पग....
गर्म धूप में ढूँढ रहे पग
नर्म छाँव का शीतल टुकड़ा।
फटी पुरानी मैली झोली
कंधे पर लटकाकर चलते।
घूरे से ख्वाबों के मोती
घूर-घूर कर दिन भर चुनते।
झर-झर बहती स्वेद धार से
धुल जाता है इनका मुखड़ा।
संग सूर्य के सूर्यमुखी ये
छोड़ बिछौना उठ चल देते ।
तपती धरती, पैर फफोले
तनिक नहीं ये विचलित होते।
दीन पुत्र यह नहीं जानते
क्योंकर इनका बचपन उजड़ा।
भरती जब साधों की झोली
इनकी किस्मत पर इठलाती।
अंगारों सी जलती आँखें
तारों सी शीतल हो जातीं।
ले आते जब फूल, धूल से
सहज भूल जाते सब दुखड़ा।
-कल्पना रामानी
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पुनः पधारिए
आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।
धन्यवाद सहित
--कल्पना रामानी
1 comment:
संवेदनाओं की गहराई को स्पर्श करता नवगीत। हार्दिक बधाई।
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