चलते जाते पाँव
यही हमारा गाँव।
पनघट पर सखियों की टोली
नयन इशारे, हँसी ठिठोली।
सिर पर आँचल, कमर गगरिया
गजब ढा रही लाल चुनरिया।
पायल की झंकार सुनाते
मेहँदी वाले पाँव।
सजे बाग, महकी अमराई
कुहू कुहू कोयल की छाई।
बरगद की छाया में झूले
पथिक देखकर रस्ता भूले।
चुग्गा चुगती नन्ही चिड़िया
कौवा बोले काँव।
भोर भए पूजा सूरज की
परिक्रमा पावन पीपल की।
नैसर्गिक सौंदर्य गाँव में
रिश्तों का माधुर्य गाँव में।
फिर भी मिटने लगी इबारत
लगा छूटने गाँव।
-कल्पना रामानी
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