शीत लहर चल पड़ी देश में
नेता को संदेश मिला।
फूले गाल, और कुछ फैले
मुख पर जैसे कमल खिला
दौरों के अब दौर चलेंगे।
सैर सपाटे दौड़ भरेंगे।
लक़दक़ ऊनी वस्त्र ओढ़कर
ठाठ-बाठ से पाँव धरेंगे।
क्या चिंता सरकारी गाड़ी
चमचों का होगा अमला।
आश्वासन की भरी पोटली।
साथ सहेजे आँसू नकली।
शब्द-शब्द में शहद घोलकर
चेहरे पर चिकनाई मल ली।
कुदरत का आभार मानकर
कुटिल काफिला चल निकला।
जिन गाँवों का छिना निवाला
जिस पाले पहुँचा था पाला
फसलें थीं मृतप्राय जहाँ पर
उन खेतों को खूब खँगाला।
कर जोड़े ग्रामीण जुट गए
ज्यों उनको भगवान मिला।
नेता ने सबको सुख बाँटे
भोले भगत अँगूठे छाँटे
बचे हुए जो चने उंबियाँ
ले आए अपनों में बाँटे।
यही चित्र स्वाधीन देश का
किससे जनता करे गिला।
1 comment:
बहुत ही उत्तम..रचना को बांधना..और विचारों को प्रवाह देना कोई आपसे सीखे .
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