दानी! अपना वचन
निभाओ
तज गर्जन घन बरसो!
आओ
नागफनी दे जहाँ
दिखाई
वहाँ कभी तुम पाँव
न रखना
कैद करें जो
तुम्हें प्रलोभन
उनके घर का नमक न
चखना
जड़ें बबूलों की
बिसराकर
अमराई को अमिय
पिलाओ!
भेद भाव तो तुम्हें
न आता
पर इतना मैं याद
दिलाऊँ
दुआ माँगता जो कर
जोड़े
उस किसान से आज
मिलाऊँ
बस उसके हों खेत न
प्यासे
इतना जल उसको
दे आओ
झील, ताल,
सागर, नदियों से
मानसून भर हाथ
मिलाना
धुआँधार सावन-अषाढ़
हों
तुम बस इतना देकर
जाना
मानव से इतना कह
जाना
दिया दान मत व्यर्थ
गँवाओ
-कल्पना रामानी
3 comments:
सुंदर रचना ।
सुंदर रचना ।
good
very nice
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