यादें दिला रहा है।
कर्ज़ यहाँ का माथे धरकर
तूने शहर बसाया
उन प्रश्नों को कुछ जवाब दे
जिनका गला दबाया
भला किसलिए इस आँगन से
तुझको गिला रहा है?
खूँटा घर से उखाड़ अपना
बाहर जाकर गाड़ा
मीठी वंशी भूल बेसुरा
पीटा वहाँ नगाड़ा
जुड़ा जन्म से जो बंधन, क्यों
उसको ढिला रहा है?
जाग ज़रा भी आब शेष है
यदि तेरी आँखों में
तोड़ तिलिस्मी पिंजड़ा आजा
बल लेकर पाँखों में
इस कंचन जीवन को माटी
में क्यों मिला रहा
है?
-कल्पना रामानी
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