रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

मेरे बारे में
कल्पना रामानी

Tuesday 29 October 2013

आ गई प्रिय फिर दिवाली

आ गई प्रिय, फिर दिवाली, पर्व पावन है।
एक दीपक तुम जलाओ, इक जलाऊँ मैं।

घोर तम की यामिनी
दुल्हन बनी इतरा रही।
अवनि से अंबर तलक
ज्योतिरमई मन भा रही।
 
रोशनी की रीत यह, युग युग से कायम है।  
दीप में प्रिय, घृत भरो, बाती सजाऊँ मैं।
 
सज रही आँगन रंगोली
द्वार लड़ियाँ हार हैं।
नवल वस्त्रों में सभी   
छोटे बड़े तैयार हैं।
 
यह सगुन की रात है, सँग साज़ सरगम है
प्रिय, सुरों में साथ दो,  शुभ गीत गाऊँ मैं।  
 
शोर से गुंजित दिशाएँ
पटाखों का दौर है
जोश जन जन मन पे छाया
पर्व का पुरजोर है।
 
यह बुराई पर विजय के, जश्न का दिन है
फुलझड़ी तुम थाम लो, प्रिय! लौ दिखाऊँ मैं।
 
थाल हैं पकवान के
पूजा की शुभ थाली सजी।
कमल पर आसीन है
कर दीप धारी लक्ष्मी।


 आ गई मंगल घड़ी, करबद्ध हर जन है
प्रिय, करो तुम आरती, माँ को मनाऊँ मैं।

 -कल्पना रामानी

1 comment:

surenderpal vaidya said...

दीपावली के अवसर पर सुन्दर नवगीत के लिए शुभकामनायें।

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

Followers