भाग्य विधाता भारत की,
पतवार भारती हिन्दी है।
अंचल अंचल की उन्नति का, द्वार
भारती हिन्दी है।
इसमें गंध बसी माटी की,
युग-पुरुषों की परम प्रिया।
नाट्य मंच हों या कि चित्र पट,
विजय वाहिनी की चर्चा।
संस्कृत की यह सुता सुंदरी
आदिकाल की यह थाती,
इसके कर-कमलों ने युग-युग
ग्रंथ-ग्रंथ इतिहास रचा।
संत-फकीरों का सुलेख, सुविचार
भारती हिन्दी है।
सखी सहेली हर भाषा की,
दल-बल साथ लिए चलती।
नए-नए शब्दों से निस दिन,
विस्तृत कोश किया करती।
विश्व-जाल औ' विश्व मंच पर,
हस्ताक्षर करके अपने,
पुरस्कार सम्मान समेटे,
नई सीढ़ियाँ नित चढ़ती।
देश-देश को जोड़ रही वो, तार
भारती हिन्दी है।
हर सपूत सेवा में इसकी,
ले मशाल आगे आए।
रहे सदा आबाद भारती,
भारतीय हर अपनाए।
दिखा रही पथ नव पीढ़ी को,
नव-भारत का स्वप्न यही,
विजय पताका दिशि-दिशि इसकी,
उच्च शिखर पर लहराए।
नई कलम के नव-गीतों का, सार
भारती हिन्दी है।
--------कल्पना रामानी
4 comments:
वह!बहुत ही सुन्दर!
जय भारती, जय भारती!
मस्तक शोभित हिंदी बिंदिया
दिव्य आलोकित, भव्य स्वरूपा ,
हिंदी उतारे आरती।
जय भारती, जय भारती!
आपकी यह सुन्दर रचना दिनांक 20.09.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
नई कलम के नव-गीतों का, सार
भारती हिन्दी है।
वाह बेहद सशक्त रचना निज भाषा का मान बढ़ाती ,
अपने कद का भान कराती।
माँ का स्नेहिल दुग्ध -पान,
आहार शिशु का, पहला पहला हिंदी है।
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