रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी

Wednesday, 24 April 2013

करनी का फल धरणी देगी

 
















जीवन भर जिसने दी छाया
इन्सानों ने उसे मिटाया।
काट काट कर डाली डाली
छलनी कर दी जड़ से काया।
 
बरगद उखड़ा, पीपल उजड़ा
अमलतास ने छोड़ी आशा।
सड़क किनारे, खड़े अकेले
गुलमोहर को हुई हताशा।

पूछ रहा कचनार काँपकर
क्या दुख हमसे किसने पाया।
 
मन ही मन हैं पेड़ सोचते
सेवा का क्या यही सिला है?
प्राणहवा दी, भूख मिटाई
पथिको को विश्राम मिला है।

कई जीवों को दिया बसेरा
बदले में अस्तित्व गँवाया।  
 
हृदय-हीन इन्सान कभी भी
नहीं जानता सुख देने का।
अत्याचार किए कुदरत पर
क्या अधिकार उसे लेने का?

करनी का फल धरणी देगी
अगर मनुष को होश न आया।


-कल्पना रामानी

2 comments:

रश्मि शर्मा said...

करनी का फल धरणी देगी...वाह््

Unknown said...

बहुत खूब ,
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
http://madan-saxena.blogspot.in/
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पुनः पधारिए


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--कल्पना रामानी

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