जीवन भर जिसने दी छाया
इन्सानों ने उसे मिटाया।
काट काट कर डाली डाली
छलनी कर दी जड़ से काया।
बरगद उखड़ा, पीपल उजड़ा
अमलतास ने छोड़ी आशा।
सड़क किनारे, खड़े अकेले
गुलमोहर को हुई हताशा।
पूछ रहा कचनार काँपकर
क्या दुख हमसे किसने पाया।
मन ही मन हैं पेड़ सोचते
सेवा का क्या यही सिला है?
प्राणहवा दी, भूख मिटाई
पथिको को विश्राम मिला है।
कई जीवों को दिया बसेरा
बदले में अस्तित्व गँवाया।
हृदय-हीन इन्सान कभी भी
नहीं जानता सुख देने का।
अत्याचार किए कुदरत पर
क्या अधिकार उसे लेने का?
करनी का फल धरणी देगी
अगर मनुष को होश न आया।
-कल्पना रामानी
2 comments:
करनी का फल धरणी देगी...वाह््
बहुत खूब ,
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